मिठाई की दुकान (हास्य कविता)
रामलाल ने खोली एक मिठाई की दुकान
इसके पास होते गुलाबजामुन लाल लाल
जो भी इस गुलाबजामुन को खाता
लाल रसीला वह हो जाता |
इसके पास होता लड्डू गोल गोल
जो भी इस लड्डू को खाता
गोल गोल वह भी हो जाता |
इसके पास होता आगरे का पेठा
चीनी समान वह होता मीठा मीठा
जो भी इस पेठे को को खाता
वह भी मीठा बोलता जाता |
इसके पास होती बहुत सी इमरती
जिसकी सदा बोलती रहती तूती
जो भी इस इमरती को खाए
वह खुद भी इमारती की तरह हो जाए |
जो लोग रामलाल की दुकान पर जाते है
बहुत सी मिठाइयाँ वे सब पाते हैं
रामलाल की मिठाइयों को खाकर
सब लोग वाह वाह कहते जाते हैं |
- लोहित मलिक
मिठाई की दुकान, मंदिर वाली गली, युसूफ सराय, नई दिल्ली |
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